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दुर्गा पूजा कब क्यू और कैसे मनाते हैं ? – दुर्गा पूजा, हिंदू धर्म का प्रमुख त्योहार, पारंपरिक रूप से हिंदू कैलेंडर के सातवें महीने अश्विन (सितंबर-अक्टूबर) के महीने में 10 दिनों के लिए आयोजित किया जाता है, और विशेष रूप से बंगाल, असम और अन्य पूर्वी भारतीय राज्यों में मनाया जाता है। दुर्गा पूजा राक्षस राजा महिषासुर पर देवी दुर्गा की जीत का जश्न मनाती है। यह उसी दिन शुरू होता है जिस दिन नवरात्रि, दिव्य स्त्री का जश्न मनाने वाला नौ रात का त्योहार है।
दुर्गा पूजा का पहला दिन महालय है, जो देवी के आगमन की शुरुआत करता है। छठे दिन षष्ठी से उत्सव और पूजा शुरू होती है। अगले तीन दिनों के दौरान, देवी को उनके विभिन्न रूपों में दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती के रूप में पूजा जाता है। उत्सव का समापन विजया दशमी (“विजय का दसवां दिन”) के साथ होता है, जब, जोरदार मंत्रोच्चार और ढोल की थाप के बीच, मूर्तियों को विशाल जुलूसों में स्थानीय नदियों में ले जाया जाता है, जहां उन्हें विसर्जित किया जाता है।
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यह रिवाज देवता के अपने घर और उनके पति शिव के हिमालय में प्रस्थान का प्रतीक है। देवी की छवियां – शेर पर सवार, राक्षस राजा महिषासुर पर हमला करते हुए – विभिन्न पंडालों (विस्तृत रूप से सजाए गए बांस संरचनाओं और दीर्घाओं) और मंदिरों में रखी गई हैं।
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Toggleकिन किन राज्यों में दुर्गा पूजा मनाया जाता हैं ?
दुर्गा पूजा भारतीय राज्यों असम, बिहार, झारखण्ड, मणिपुर, ओडिशा, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में व्यापक रूप से मनाया जाता है| जहाँ इस समय पांच दिन की वार्षिक छुट्टी रहती है।[6] बंगाली हिन्दू और आसामी हिन्दुओ का बाहुल्य वाले क्षेत्रों पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा में यह वर्ष का सबसे बड़ा #उत्सव माना जाता है। यह न केवल सबसे बड़ा हिन्दू उत्सव है बल्कि यह बंगाली हिन्दू समाज में सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से सबसे महत्त्वपूर्ण उत्सव भी है।
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पश्चिमी भारत के अतिरिक्त दुर्गा पूजा का उत्सव दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, कश्मीर, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल में भी मनाया जाता है। *दुर्गा पूजा का उत्सव 91% हिन्दू आबादी वाले नेपाल और 8% हिन्दू आबादी वाले बांग्लादेश मे बड़े त्यौंहार के रूप में मनाया जाता है।
वर्तमान में विभिन्न प्रवासी आसामी or बंगाली सांस्कृतिक संगठन, सयुक्त राज्य अमेरीका/ कनाडा/ यूनाइटेड किंगडम/ ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी/ फ्रांस, नीदरलैण्ड/ सिंगापुर और कुवैत सहित विभिन्न देशों में आयोजित करवाते हैं। वर्ष 2006 मे ब्रिटिश संग्रहालय में विश्वाल *दुर्गापूजा का उत्सव आयोजित किया गया।[7]
दुर्गा पूजा की ख्याति ब्रिटिश राज में बंगाल और भूतपूर्व असम में धीरे-धीरे बढ़ी।[8] हिन्दू सुधारकों ने *दुर्गा को भारत में पहचान दिलाई और इसे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलनो का प्रतीक बनाया|
हैप्पी नवरात्रि अपने नाम से ऑनलाइन विश कैसे करते है – Navratri Wish Kaise Kare
माँ दुर्गा के 9 रूप ।
शैलपुत्री
ब्रह्मचारिणी
चन्द्रघंटा
कूष्माण्डा
स्कंदमाता
कात्यायनी
कालरात्रि
महागौरी
सिद्धिदात्री
देवी माँ स्वयं को सभी रूपों में प्रत्यक्ष करती है,और सभी नाम ग्रहण करती है। माँ दुर्गा के नौ रूप और हर नाम में एक दैवीय शक्ति को पहचानना ही नवरात्रि मनाना है। नवरात्रि पर्व की 9 रातें देवी माँ के 9 विभिन्न रूपों को को समर्पित हैं जिसे नव दुर्गा भी कहा जाता है।असीम आनन्द और हर्षोल्लास के नौ दिनो का उचित समापन बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक पर्व #दशहरा मनाने के साथ होता हैं।
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किस दिन कौन सी देवी की पूजा की जाती हैं ?
नवरात्री में नव दिन हम माँ के नवो रूपों की पूजा करते हैं|
1. शैलपुत्री
पहले दिन माँ के शैलपुत्री रूप की पूजा की जाती है , कहा जाता है की माँ आदिशक्ति ने अपने इस रूप मे शैलपुत्र हिमालय के घर उनकी पुत्री के रूप मे जन्म लिया था| इसी कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा, शैलपुत्री नंदी नाम के वृषभ पर सवार होती है और इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल पुष्प हैं।
माँ शैलपुत्री पूजा विधि :- माँ शैलपुत्री की तस्वीर स्थापित करें और उसके नीचे लकडी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं। इसके ऊपर केशर से शं लिखें और उसके ऊपर मनोकामना पूर्ति गुटिका रखें। इसके बाद हाथ में लालपुष्प लेकर माँ का ध्यान करें। और मंत्र बोलें-‘ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ओम् शैलपुत्री देव्यै नम:|
माँ शैलपुत्री पूजा भोग :- माँ शैलपुत्री की चरणों में गाय का घी चढ़ाने से भक्तों को आरोग्य का आशीर्वाद मिलता है और उनका मन एवं शरीर दोनों ही स्वस्थ रहता है|
माँ शैलपुत्री का मन्त्र :- ऊँ शं शैलपुत्री देव्यै: नम:।
माँ शैलपुत्री का आशीर्वाद :- हर तरह की बीमारी दूर करतीं हैं।
2. ब्रह्मचारिणी
माता का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी का हैं :- माँ दुर्गे की नौ शक्तियो में से दूसरा शक्ति देवी ब्रह्मचारिणी का है। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली यानी तप का आचरण करने वाली माँ ब्रह्मचारिणी। माँ ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में अक्ष माला है और बाएं हाथ में कमण्डल होता है। इस देवी के और भी अन्य नाम हैं जैसे तपश्चारिणी, अपर्णा और उमा। शास्त्रों में माँ के एक हर स्वरूप की कथा का महत्व बताया गया है। माँ ब्रह्मचारिणी की कथा जीवन के कठिन क्षणों में भक्तो को सहारा देती है।
माँ ब्रह्मचारिणी पूजा विधि :- देवी की पूजा मे सबसे पहले आपने जिन देवी-देवताओ एवं गणों व योगिनियों को कलश में आमत्रित किया है। उनकी फूल, अक्षत, रोली, चंदन से पूजा करे उन्हे दूध, दही, शर्करा, घृत, व मधु से स्नान कराये or देवी को जो कुछ भी प्रसाद अर्पित कर रहे है उसमें से एक अंश इन्हें भी अर्पण करें|
माँ ब्रह्मचारिणी पूजा भोग :- देवी माँ के इस स्वरुप को मिश्री, चीनी और पंचामृत का भोग लगाना चाहिए।
माँ ब्रह्मचारिणी पूजा मंत्र :- दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा
माता का आशीर्वाद :- माँ भक्तो को लंबी आयु व सौभाग्य का वरदान देतीं हैं |
3. चन्द्रघंटा
माँ दूर्गा का तीसरा रूप चन्द्रघंटा हैं :- माँ के माथे पर घंटे के आकार में अर्धचंद्र है। जिसके चलते इनका यह नाम पड़ा माँ का यह स्वरुप बहुत शांतिदायक है। इनके पूजन से मन को शांति की प्राप्ति होती है। ये भक्त को निर्भय कर देती हैं। देवी माँ का स्मरण जीवन का कल्याण करता है।
माँ चन्द्रघंटा पूजा विधि :- देवी माता की चौकी पर माता चंद्रघंटा की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करे। उसके बाद गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें। चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के घड़े में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें। इसके बाद पूजा का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारामां चंद्रघंटा सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें।
माँ चन्द्रघंटा पूजा भोग :- माँ चंद्रघंटा को दूध एवं उससे बनी चीजो का भोग लगाए और और इसी का दान भी करे। ऐसा करने पर माँ खुश होती है| और सभी दुखों का नाश करती हैं। इसमें भी माँ चंद्रघंटा को मखाने की खीर का भोग लगाना श्रेयकर माना गया है।
माँ चन्द्रघंटा पूजा मंत्र :- पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता। प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥
माता का आशीर्वाद :- साधक के समस्त पाप और बाधाएं नष्ट कर देती हैं।
4.कूष्माण्डा
दूर्गा माँ का चौथा रूप कूष्माण्डा हैं :- माँ के तेज और प्रकाश से दसों दिशाएं प्रकाशित हो रही हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में अवस्थित तेज इन्हीं की छाया है। माँ की आठ भुजाएं हैं। इसीलिए इन्हे ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं। दुर्गा सप्तशती के अनुसार देवी कूष्माण्डा इस चराचार जगत की अधिष्ठात्री हैं।
माँ कूष्माण्डा की पूजा विधि :- दुर्गा पूजा के चौथे दिन माता कूष्माण्डा की सभी प्रकार से विधिवत पूजा आरती करनी चाहिए। दुर्गा पूजा के चौथे दिन देवी कूष्माण्डा की पूजा का विधान उसी प्रकार है जिस प्रकार शक्ति अन्य रुपों को पूजन किया गया है। इस दिन भी सबसे पहले कलश और उसमें उपस्थित देवी देवता की पूजा करनी चाहिए।
तत्पश्चात माँ के साथ अन्य देवी देवताओं की पूजा करनी चाहिए, इनकी पूजा के पश्चात देवी कूष्माण्डा की पूजा करनी चाहिए पूजा की विधि शुरू करने से पूर्व हाथों में फूल लेकर देवी माँ को प्रणाम करना चाहिए तथा पवित्र मन से देवी का ध्यान करते हुए सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च. दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे नामक मंत्र का जाप करना चाहिए।
माँ कूष्माण्डा पूजा भोग :- मालपुए का भोग लगाएं |
माँ कूष्माण्डा पूजा मंत्र :- सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च | दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे |
माता का आशीर्वाद :- माँ कूष्मांडा अत्यल्प सेवा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली हैं। इनकी उपासना से सिद्धियों में निधियों को प्राप्त कर समस्त रोग-शोक दूर होकर आयु-यश में वृद्धि होती है। साथ ही माँ कूष्माण्डा की उपासना मनुष्य को आधियों-व्याधियों से सर्वथा विमुक्त करके उसे सुख, समृद्धि और उन्नति की ओर ले जाने वाली है।
5 .स्कंदमाता
दूर्गा माँ का पांचवा रूप कूष्माण्डा हैं :- माँ स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं। इनके दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा, जो ऊपर की ओर उठी हुई है, उसमें कमल पुष्प है। बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा में वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है उसमें भी कमल पुष्प ली हुई हैं। इनका वर्ण पूर्णत: शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण इन्हें माँ पद्मासना देवी भी कहा जाता है। सिंह भी इनका वाहन है।
माँ स्कंदमाता की पूजा विधि :- सर्वप्रथम चौकी पर स्कंदमाता की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें। चौकी पर चांदी या तांबे या मिट्टी के घड़े में जल भरकर उस पर कलश रखे। उसी चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका (16 देवी), सप्त घृत मातृका (सात सिंदूर की बिंदी लगाएं) की स्थापना भी करें। इसके बाद व्रत, पूजन का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा स्कंदमाता सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें।
इसमें आवाहन, आसन, पाद्य, अध्र्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र पुष्पांजलि आदि करें।
माँ स्कंदमाता पूजा भोग :- माँ स्कंदमाता पंचमी तिथि के दिन पूजा करके भगवती दुर्गा को केले का भोग लगाना चाहिए ।
माँ स्कंदमाता पूजा मंत्र :- सिंहासना गता नित्यं पद्माश्रि तकरद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी ।
माता का आशीर्वाद :- माता की उपासना से भक्त की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं. भक्त को मोक्ष मिलता है.
6. कात्यायनी
माता रानी का छठा रूप कात्यायनी हैं :- मां दुर्गा के नौ रूपों मे देवी कात्यायनी माँ का छठा अवतार हैं। देवी का यह स्वरूप करुणामयी है। देवी पुराण के अनुसार कात्यायन ऋषि के घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण इन्हें कात्यायनी के नाम से जाना जाता है।माँ कात्यायनी का शरीर सोने जैसा सुनहरा और चमकदार है। माँ चार भुजाधारी और सिंह पर सवार हैं। उन्होंने एक हाथ में तलवार और दूसरे हस्त में कमल का पुष्प धारण किया हुआ है। अन्य दो हाथ वरमुद्रा और अभयमुद्रा में हैं।
माँ कात्यायनी की पूजा विधि :- दुर्गा पूजा के छठे दिन भी सर्वप्रथम कलश व देवी कात्यायनी जी की पूजा कि जाती है. पूजा की विधि शुरू करने पर हाथो मे फूल लेकर देवी को नमन कर देवी के मंत्र का ध्यान किया जाता है| देवी की पूजा के बाद महादेव एवं परम पिता की पूजा करनी चाहिए ,भगवान श्री हरि की पूजा देवी लक्ष्मी के साथ ही करनी चाहिए|
माँ कात्यायनी पूजा भोग :- इस दिन प्रसाद में शहद का प्रयोग करना चाहिए।
माँ कात्यायनी पूजा मंत्र :- चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दूलवर वाहना। कात्यायनी शुभंदद्या देवी दानव घातिनि।।
माता का आशीर्वाद :- इनकी उपासना भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है, तथा उनके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते है।
विवाह नहीं हो रहा या फिर वैवाहिक जीवन में कुछ परेशानी है तो उसे शक्ति के इस स्वरूप की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
7. कालरात्रि
माता रानी का सातवा रूप कालरात्रि हैं :- नवरात्रि के सातवें दिन होती है माँ कालरात्रि की पूजा। माँ कालरात्रि को यंत्र, मंत्र और तंत्र की देवी कहा जाता है। कहा जाता है कि देवी माँ दुर्गा ने असुर रक्तबीज का वध करने के लिए कालरात्रि को अपने तेज से उत्पन्न किया था, इनकी उपासना से प्राणी सर्वथा डर और भय मुक्त हो जाता है। कहा जाता हैं की भगवान भोलेनाथ ने एक बार देवी को काली कह दिया तभी से इनका एक नाम काली भी पड़ गया।
दानव, भूत, प्रेत, पिशाच आदि इनके नाम लेने मात्र से भाग जाते है। माँ कालरात्रि का रूप काला है, लेकिन यह सदैव सुख और शुभ फल देने वाली है। इसी कारण इनका एक नाम शुभकारी भी है। उनके शरीर का रंग अंधकार की तरह काला हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला हैं। तीन नेत्र ब्रमांड की तरह गोल हैं, जिनसे ज्योति निकलती हैं। इस स्वरूप का ध्यान हमारे जीवन के अंधकार से मुकाबला कर उसे रौशनी की ओर ले जाने के लिए प्रेरित करता हैं।
माँ कालरात्रि की पूजा विधि :- हर दिन की तरह इस दिन भी सुबह उठकर स्नान कर साफ कपड़े धारण करें। सबसे पहले गणेश जी का ध्यान करें। कलश देवता की विधिवत पूजा करें। फिर माता कालरात्रि की पूजा में अक्षत, धूप, रातरानी के पुष्प, गंध, रोली, चंदन का इस्तेमाल करते हुए उनकी पूजा करें। मां को पान, सुपारी भेंट करें। घी या कपूर जलाकर माँ कालरात्रि की आरती करें और कथा सुनें।
माँ कालरात्रि को भोग :- कालरात्रि को गुड़ बहुत पसंद है| इसलिए महासप्तमी के दिन उन्हें गुड़ भोग लगाना शुभ माना जाता है. मान्यता है कि मां को गुड़ का भोग चढ़ाने और ब्राह्मणों को दान करने से वह प्रसन्न होती हैं और सभी विपदाओं का नाश करती है |
माँ कालरात्रि पूजा मंत्र :- देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्तया, निश्शेषदेवगणशक्तिसमूहमूर्त्या तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां, भक्त नता: स्म विपादाधातु शुभानि सा न: |
माता का आशीर्वाद :- माँ की भक्ति से दुष्टों का नाश होता है और ग्रह बाधाएं दूर हो जाती हैं. मान्यता है कि माँ कालरात्रि की पूजा करने से मनुष्य समस्त सिद्धियों को प्राप्त कर लेता है|
8. महागौरी
माता रानी का आठवाँ रूप महागौरी हैं :- नवरात्री के आठवे दिन माँ महागौरी की पूजा की जाती है| मार्कंडेय पुराण के अनुसार कहा जाता है की शुभ-निशुम्भ से पराजित होकर देवतागण गंगा के तट पर जिस देवी की प्रार्थना कर रहे थे वह महागौरी है।
देवी *महागौरी के अंश से ही कौशिकी का जन्म हुआ जिसने शुम्भ निशुम्भ के प्रकोप से देवताओं को मुक्त किया। यह देवी गौरी शिव की पत्नी है। इन्ही की पूजा शिवा और शाम्भवी के नाम से भी की जाती है।
देवी महागौरी का रंग अत्यंत गौरा है। इनकी आयु आठ वर्ष बताई गई हैं। इनकी चार भुजाएं है। इनका वाहन बैल हैं , देवी के दाहिने ओर के ऊपर वाले हाथ में अभय मुद्रा एवं नीचे वाले हाथ में त्रिशूल हैं । बाएं ओर के ऊपर वाले हाथ मे डमरू एवं नीचे वाले हाथ में वर मुद्रा हैं, इनका स्वभाव अति शांत हैं। माँ महागौरी के प्रसन्न होने पर भक्तों को सभी सुःख अपने आप ही प्राप्त हो जाते हैं। इसके साथ ही शांति का अनुभव भी होता है।
गोस्वामी तुलसीदास के अनुसार इन्होंने शिवजी को प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या का संकल्प लिया था। जिससे इनका शरीर काला पड़ गया था, उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर जब शिव जी ने इनके शरीर पर पवित्र गंगाजल डाला तब वें विद्युत के समान पूरी तरह कांतिमान एवं गौर हो गया। तभी से इनका नाम महागौरी पड़ा।
माँ महागौरी की पूजा विधि :- सर्वप्रथम लकड़ी की चौकी पर या मंदिर में महागौरी की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद चौकी पर सफेद वस्त्र बिछाकर उस पर महागौरी यंत्र रखें और यंत्र की स्थापना करें। माँ सौंदर्य प्रदान करने वाली हैं। हाथ में सफेद पुष्प लेकर माँ का ध्यान करें। अब मां की मूर्ति के आगे दीपक चलाएं और उन्हें फल, फूल, नैवेद्य आदि अर्पित करें। इसके बाद देवी मां की आरती उतारें।
अष्टमी के दिन कन्या पूजन करना श्रेष्ठ माना जाता है। कन्याओं की संख्या नव होनी चाहिए नहीं तो दो कन्याओं की पूजा करें। कन्याओं की आयु दो साल से ऊपर और दस वर्ष से ज्यादा न हो। कन्याओं को दक्षिणा देने के बाद उनके पैर छूकर उनका आशीर्वाद लें।
माँ महागौरी पूजा भोग :- नवरात्रि की अष्टमी तिथि को माँ को नारियल अर्पित करने की परंपरा है। आज के दिन कन्या पूजन का विशेष महत्व होता है।
देवी महागौरी की पूजा का मंत्र :-
श्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्बराधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।
या देवी सर्वभूतेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
माता का आशीर्वाद :- देवी माँ दुर्गा के इस सौम्य रूप की पूजा से मन की पवित्रता बढ़ती है। जिससे सकारात्मक ऊर्जा भी बढ़ने लगती है। मन को एकाग्र करने में मदद मिलती है। देवी महागौरी की पूजा करने से मनोवांछित फल भी मिलते हैं। देवी की पूजा से पाप खत्म जाते है। जिससे मन और शरीर शुद्ध हो जाता है। अपवित्र व अनैतिक विचार भी नष्ट हो जाते हैं।
9. सिद्धिदात्री
माता रानी का नौवा रूप सिद्धिदात्री हैं :- इस दिन माँ दुर्गा अपने नौवे स्वरुप में सिद्धिदात्री के नाम से जनि जाती है ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली है इस दिन माँ सिद्धिदात्री की उपासना से उपासक की सभी सांसारिक इच्छाएं एवं आव्सकताएँ पूरी हो जाती है सिद्धिदात्री माँ की कृपा से मनुस्य सभी प्रकार की सीढियाँ प्राप्त कर मोक्ष पाने में सफल होता है
मार्कण्डेय पुराण में अणिमा महिमा गरिमा लघिमा प्राप्ति प्राकाम्य ईशित्व व वशित्वये आठ सिद्धिया बतलाई गई है भगवती सिद्धिदात्री ये सभी सिद्धिया अपने उपासको को प्रदान करती है माँ दुर्गा के इस अंतिम स्वरुप की आरधना के साथ ही नवरात्र कर आनुष्ठान की समाप्ति हो जाती है और इस दिन नवनि के कारण रामनवमी भी मनाई जाती है |
माँ सिद्धिदात्री की पूजा विधि :- सबसे पहले माँ सिद्धिदात्री के सामने दिया जलाये अब माँ को लाल रंग के नौ फूल चढ़ाये कमल का फूल हो तो बेहतर हे ें फूलो को लाल रंग के वस्त्र में लपेट कर रखे इसके बाद माता को नौ तरह के भोग चढ़ाये अपने आस पास के लोगो में प्रसाद बाटे साथ ही गरीबो को भोजन कराये इसके बाद स्वयं भोजन ग्रहण कर लें |
माँ सिद्धिदात्री पूजा भोग :- विभिन प्रकार के अनाजों का भोग लगाएं |
देवी सिद्धिदात्री की पूजा का मंत्र :-
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम्॥
सिद्धगंधर्वयक्षाद्यै:, असुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात्, सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।
माता का आशीर्वाद :- हर प्रकार की सिद्धि प्रदान करतीं है |वही इसके अगले दिन दसमी मनाई जाती है इस दिन देवी माता की मूर्तियों का विसर्जन किया जाता हैं |
दुर्गा पूजा कब क्यू और कैसे मनाते हैं ?
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